रोज़मर्रा की आपाधापी से गुज़रते हुए जब आप थकहार कर टीवी के सामने बैठते हैं तो क्या खुद को इस बात के लिए तैयार रखते हैं कि कुछ वक्त निकाल कर सोचा जाना चाहिए कि किसी अपराधी को अपराध की क्रूरता के अनुसार बालिग माना जाए या उसके कच्चे मन की सीमाओं को समझते हुए नाबालिग माना जाए।