विचारधीन कैदी. हिंदी के जिस विद्वान ने कैदी के आगे विचाराधीन लगाया होगा उसे विचार पर बहुत भरोसा रहा होगा. इतना तो भरोसा होगा ही कि विचार में देरी है मगर विचार होगा. अगर उसे पता होता है कि विचाराधीन कैदियों के बारे में विचार होने में ही दस से बीस साल लग जाएंगे, तब भी वह विचाराधीन ही कहता? या इसकी जगह विचारविहीन कैदियों का चुनाव करता. अजीब नहीं है कि जिसके बारे में विचार नहीं हो रहा है वह विचाराधीन कैदी है. तेलुगु भाषा के बड़े कवि वरवर राव जिस मामले में गिरफ्तार किए गए हैं उस मामले में 22 महीने से ट्रायल नहीं हुआ. गिरफ्तारी को लेकर गंभीरता है सुनवाई को लेकर नहीं. अब उनका मानसिक और शारीरिक संतुलन बिगड़ता हुआ लग रहा है. वरवर राव कवि और शिक्षक के अलावा राजनीतिक कार्यकर्ता रहे हैं. कांग्रेस-बीजेपी टाइप के राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं, जो चुनाव के बाद एक जैसे हो जाते हैं. इस वक्त वरवरा राव को मुंबई से बाहर तालोजा जेल में रखा गया था, भीमा कोरेगांव केस में. परिवार के लोगों ने बताया कि वरवरा राव का फोन आता है तो लड़खड़ाती आवाज में बातें करने लगे हैं. कई बार ऐसी खबरें आई कि उनकी तबीयत जेल में ठीक नहीं है. हालांकि अब उन्हें अस्पताल शिफ्ट किया गया है.