इस्तीफा मांगने वालों से भी एक नैतिक सवाल होना चाहिए. इस्तीफा से क्या हुआ. क्या सुरक्षा की स्थिति बदल जाएगी. बदलनी होती तो तीन साल में बदल गई होती. सुरेश प्रभु जब खून-पसीना लगाकर काम कर रहे थे और दावा कर रहे हैं कि उनके अनुसार रेलवे उसी रास्ते पर चल रहा है जिस पर चलना चाहिए, तो ऐसे मंत्री को क्यों जाना चाहिए. जो नया आएगा उसे समझने में ही कई महीने लग जाएंगे या फिर क्या पता रेल मंत्रालय का ढांचा ही पूरा बदल जाए.