जम्मू-कश्मीर आज की तारीख़ में जैसे दर्द से ऐंठती देह का नाम है. करीब तीन दशक से जारी आतंकवाद ने इस राज्य को कहीं का नहीं छोड़ा है. ये आतंकवाद अब बहुत सारे लोगों का कारोबार भी हो चुका है. इसका नतीजा वे आम लोग भुगतते हैं जिनके हिस्से तरह-तरह के संकट आते हैं- रोज़गार का संकट, जान का संकट, पहचान का संकट और अकेलेपन का संकट. जब भी जम्मू-कश्मीर का ज़िक्र आता है, अक्सर जैसे आतंकवाद के संदर्भ में ही आता है. या तो वहां आतंकी किसी मुठभेड़ में मारे जाते हैं या फिर हमारे सुरक्षाकर्मी शहीद होते हैं.