ये कहानी शुरू होती है आज से डेढ़ महीने पहले। बीए में पढ़ने वाली संजना... आँखों में सपने लिए कॉलेज से अपना एडमिट कार्ड लेने के लिए घर से निकली थी। लेकिन उस दिन सूरज तो डूबा, पर संजना घर नहीं लौटी। एक माँ का दिल बेचैन था। परेशान माँ-बाप अपनी बेटी की तस्वीर लेकर थाने पहुँचे। लेकिन यहीं से उनकी असली लड़ाई शुरू हुई... अपने ही देश के सिस्टम के खिलाफ। उन्हें एक थाने से दूसरे थाने भगाया गया। गोरौल थाना कहता, 'ये भगवानपुर का मामला है।' भगवानपुर थाना अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता। माँ-बाप की उम्मीदें और चप्पलें... दोनों घिसती रहीं। सिस्टम अपनी कुर्सी पर बैठा उबासी भरता रहा।