ये बताने की ज़रूरत नहीं कि देश इन दिनों कोरोना के कैसे अभूतपूर्व संकट से गुज़र रहा है. कोरोना की ये दूसरी लहर पिछले साल उठी पहली लहर से कहीं ज़्यादा तेज़, कहीं ज़्यादा भयानक है. एक एक दिन में डेढ़ डेढ़ लाख से ज़्यादा लोग कोरोना की चपेट में आ रहे हैं. कहीं रात का कर्फ़्यू है, कहीं वीकेंड का लॉकडाउन. कुछ राज्यों में अगले एक दो दिनों में पूरे लॉकडाउन की संभावना से इनकार नहीं किया जा रहा. ये वो हालात हैं जो एक बार फिर लाखों लोगों को बीमार ही नहीं बेरोज़गार भी कर देंगे. लोग रोटी-रोटी को तरसने लगेंगे. पिछले साल कोरोना और लॉकडाउन की वजह से जो हुआ क्या उसका सबक हम कुछ ही महीनों में भूल गए. कम से कम दो दायरों में तो कह ही सकते हैं कि हम भूल गए. एक जहां राजनीति जुड़ी है और दूसरा जहां धर्म की बात आती है. पिछले साल इन्ही दिनों दिल्ली में तब्लीग़ी जमात के मरकज़ में जमा हुए लोगों के बारे में क्या क्या नहीं कहा जा रहा था. तब भी ग़लती थी, इतने लोगों को ऐसे समय जमा नहीं होना चाहिए था, हुए थे तो ख़ुद ही समय पर सरकार को बताकर वापस चले जाना चाहिए था. लेकिन साल भर बाद क्या हो रहा है, कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है. मज़हब बदल गया लेकिन बात वही है.