इतिहास इस लम्हे का गवाह नहीं बन पाता, अगर 13 साल पहले तब के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की बात एक दूसरे अर्थशास्त्री ने मान लिया होता। अगर 1991 में नरसिम्हाराव जिसको वित्त मंत्री बनाना चाहते थे, वो मान गये होते तो मनमोहन सिंह तब वित्त मंत्री नहीं बन पाते और वित्त मंत्री नहीं बने होते तो देश उस आर्थिक सुधार से शायद वंचित रह जाता, जिसके फायदे आज दिखते हैं और भारत दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बना हुआ है।