15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री के भाषण में कश्मीर का ज़िक्र उनके राष्ट्र के नाम संबोधन से कितना अलग होगा, लोगों की नज़र होगी. इस संदर्भ में हमने पूर्व प्रधानमंत्रियों नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के भाषणों को पढ़ा. आप भी पढ़ सकते हैं और इनके वीडियो यू ट्यूब पर हैं. प्रसार भारती के आर्काइव चैनल पर. वहां आप भी सुन सकते हैं कि पहले के प्रधानमंत्रियों और मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में अब तक कश्मीर का ज़िक्र किस तरह से आया है. नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण में शिमला समझौते की प्रमुखता है. आपस में बात करने पर ज़ोर है. आतंरिक मामला बताया गया है. 2002 के एक भाषण में वाजपेयी ने कश्मीरी पंडितों का नाम लेकर ज़िक्र किया था बाकी कुछ भाषणों में उनका ज़िक्र विस्थापित लोगों की तरह आया है. 2002 के भाषण में कह रहे हैं कि कश्मीरी पंडित घर जा सकेंगे ऐसा भरोसा है. इसी साल के भाषण में वाजपेयी कह रहे हैं कि कश्मीर धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण है. भारत हमेशा ही धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के इम्तहान से गुज़रा है और पास हुआ है. 2001 के भाषण में वाजपेयी ने कहा था कि कश्मीरियत सर्व धर्म समभाव का बेहतरीन उदाहरण है. वाजपेयी ने कहा था कि कश्मीरियत दो राष्ट्र के सिद्धांत को नकारती है. 2002 में वाजयेपी ने कहा था कि अगर कोई गलती हो जाएगी तो उसमें सुधार करेंगे और वहां के चुने हुए प्रतिनिधियों और संगठन से हम बात करेंगे. नरसिम्हा राव से लेकर मनमोहन सिंह के भाषण में कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग कहा गया है. आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया गया है.