2018 का साल 12 जनवरी के चार जजों के प्रेस कांफ्रेंस से जिन सवालों को लेकर शुरू हुआ था, वह 10 दिसंबर के रिज़र्व बैंक के गवर्नर के इस्तीफे से और बड़ा हो गया है. इस बीच सीबीआई का हाल आप देख चुके हैं. पंचपरमेश्वर की एक पंक्ति है. क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे. लगता है कि भारत की सर्वोच्च संस्थाओं पर बैठे कुछ लोगों के ईमान पर कोई दस्तक दे रहा है. 12 जनवरी से यह साल शुरू हुआ, 10 दिसंबर को एक मोड़ पर पहुंचा है. 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज बाहर आए और देश की जनता को बताया कि न्यायपालिका की आज़ादी ख़तरे में है. 10 दिसंबर को भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा देकर उन चर्चाओं को साबित कर दिया कि अपने रहते अब और इस संस्थान की गरिमा दांव पर नहीं लगा सकते हैं.