सुप्रीम कोर्ट ही इजाज़त देता है कि उसके फैसले की समीक्षा की जा सकती है. कोर्ट से भी फैसले की समीक्षा का आग्रह किया जा सकता है और सामान्य जन भी अपनी चर्चाओं में फैसले की समीक्षा कर सकते हैं. बस आप यह नहीं कह सकते कि किस वजह से इस जज ने ऐसा लिखा होगा, अगर आप मंशा जोड़ेंगे तो अवमानना का सामना करना होगा. आम तौर पर राजनेता तय करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के किस फैसले पर राजनीति करेंगे और किस पर नहीं. बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि वाले फैसले के मामले में कोर्ट का फैसला किस्मत वाला रहा कि सभी राजनीतिक दलों ने कहा कि हम राजनीति नहीं करेंगे. स्वीकार करेंगे. लेकिन जब 2018 में सबरीमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तब बीजेपी ही इस फैसले का विरोध करने वाले लोगों के साथ खड़ी हो गई. नहीं कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन करते हैं.