कबीर ने करीब 550 बरस पहले कह दिया था, 'भाई रे दुइ जगदीश कहां ते आया, कहुं कौने भरमाया. अल्लाह राम करीमा केशव, हरि हजरत नाम धराया.' यानी मेरा खुदा तुम्हारा खुदा अलग कैसे हो सकता है, ये भ्रम किसने फैलाया. लेकिन इसके बावजूद 1885 से इस जमीन पर सबसे बड़ा विवाद यही है कि इस जमीन पर किसकी इबादत हो. इस एक मुद्दे ने देश में बहुत कुछ बदल दिया, रिश्ते भी बदल गए और सियासत भी बदल गई. रिश्ते तो चाहते थे कि बातचीत से ये मसला हल हो जाए. लेकिन सियासत ने हल नहीं होने दिया. 133 साल तक वे अपने-अपने खुदा के लिए अदालत में लड़ते रहे. फैसले की इस घड़ी में हम उस मुकद्दस मुकाम पर हैं जो भगवान राम की अयोध्या कहलाती है. राम इस धरती पर सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले भगवानों में से एक हैं. वो भगवान भी हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम भी. भगवान राम का मंदिन जन्मस्थान बनाने का पहला मुकदमा 1885 में फैजाबाद की जिला अदालत में दाखिल हुआ. बाबरी मस्जिद के दावाजे के बपास बैरागियों ने एक चबूतरा बना रखा था जिसे वे चबूतरा जन्मस्थान कहते थे. वहां वे रामलला की पूजा करते थे. इसी स्थान के महंत रघुबर दास ने अदालत से उस चबूतरे पर भगवान राम का मंदिर बनाने की इजाजत मांगी जिसे अदालत ने दो कौमों के बीच झगड़े के अंदेशे में खारिज कर दिया.