सौ की संख्या में आए ये किसान तमिल में नारे लगा रहे हैं. शायद ही इनकी आवाज़ दिल्ली के आसपास के किसानों तक पहुंचे. भारत में किसान, किसान के लिए नहीं बोलता है. शहर, किसान के लिए नहीं बोलते है. नारों की भाषा बदल भी जाती तो भी इन्हें सुनने वाले लोग नहीं बदलते.