लोकतंत्र में जब संविधान की धज्जियां उड़ने लगें तो वह भी नरक ही होता है अगर नरक होता है तो. यह तो सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि महाराष्ट्र में संविधान की धज्जियां उड़ी की नहीं हैं. 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाते हैं. इसी दिन भारत का संविधान तैयार रूप में स्वीकृत हुआ था. इसी दिन सुप्रीम कोर्ट का महाराष्ट्र में फ्लोर टेस्ट के मामले में फैसला आएगा. 26 जनवरी 2016 को जब भारत संविधान के लागू होने के जश्न में डूबा था तब शाम सात बजकर 59 मिनट पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के कैबिनेट की सिफारिश पर दस्तखत कर रहे थे. सरकार के मंत्री और वकील राष्ट्रपति शासन के पक्ष में खूब दलीलें देते थे. हेडलाइन छपती थी लेकिन सात महीने बाद जुलाई 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन के फैसले को रद्द कर दिया. तब राष्ट्रपति और राज्यपाल के विवेकाधिकार और कैबिनेट के फैसले को सर्वोच्च बताया जा रहा था. पांच जजों की खंडपीठ ने यह फैसला दिया था. इसमें से एक जस्टिस खेहर ने कहा था कि जब राजनीतिक प्रक्रियाओं की हत्या हो रही हो तो कोर्ट मूकदर्शन बना नहीं रह सकता. राजनीतिक प्रक्रियाओं की हत्या किसने की थी आपको बताने की ज़रूरत नहीं है.