Maharashtra Politics: अजित पवार को भाजपा और शिंदे वाली शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर उम्मीद थी कि वो पार्टी के साथ-साथ जनता का भी दिल जीत लेंगे. पहला टेस्ट लोकसभा चुनाव था. मगर इसमें वो फेल हो गए. मगर इससे भी बड़ी बात ये है कि भाजपा या शिंदे के साथ रहकर भी वो पूरी तरह दक्षिणपंथी नहीं होना चाहते. उन्हें पता है कि शरद पवार अब उम्र के उस पड़ाव पर हैं कि सक्रिय रुप से शायद 2029 में होने वाले विधानसभा चुनाव में न रह सकें. तब शरद पवार के चाहने वाले और मानने वाले उन्हीं की तरफ रुख करेंगे. इसीलिए अजित पवार भी शरद पवार की मध्य मार्गी राजनीति करना चाह रहे हैं. इसलिए वक्फ बोर्ड पर वो मुसलमानों के साथ दिख रहे हैं तो राम मंदिर से लेकर सभी राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपा के साथ. अब वो शरद पवार या सुप्रिया सुले के खिलाफ भी नहीं दिखना चाहते. यही कारण है कि वो गलती मानने की बातें कह कर शरद पवार के वोटरों को साध रहे हैं.