हमारी राजनीति आस्था के नाम पर न जाने कितने डेरों और आश्रमों की गुलाम हो चुकी है अंदाज़ा भी नहीं होगा. चुनाव होता नहीं कि नेता उनके मंच पकड़ लेते हैं. जयंतियां मनाने लगते हैं और उनके पांव पड़ने लगते हैं. हम और आप लगातार नाना प्रकार के तर्क खोजकर आस्था के नाम पर इन दुकानों का बचाव करने लगते हैं. बहुत से आश्रम हैं जहां आध्यात्मिक बातें होती हैं मगर उनका ज़िक्र आप कहीं नहीं सुनेंगे. वे अच्छा काम भी करते हैं लेकिन ऐसा क्यों हैं कि कुछ आश्रम ज़रूरत से ज़्यादा राजनीति और बिजनेस में ताकतवर हो गए हैं.