प्रेग्नेंसी का पता लगाना आजकल काफी आसान हो गया है, कुछ ही सेकेंड में रिजल्ट आपके सामने होता है. इसके लिए हर मेडिकल स्टोर में किट आपको आसानी से मिल जाती है, जिसमें यूरिन की कुछ बूंद डालने के बाद पता चल जाता है कि महिला प्रेग्नेंट है या फिर नहीं... लेकिन क्या आपने सोचा है कि सैकड़ों साल पहले जब ऐसी किट मौजूद नहीं थी, तब कैसे लोग प्रेग्नेंसी का पता लगाते थे? तमाम लोग इसे अपने-अपने तरीके से पहचानते थे, लेकिन गेहूं और जौ वाला टेस्ट काफी मशहूर था. सैकड़ों साल पहले इसका इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में हुआ करता था.
नेचुरल तरीकों का इस्तेमाल
आज से करीब 400 से 500 साल पहले मेडिकल साइंस इतना आगे नहीं बढ़ा था, न तो अस्पतालों की सुविधा थी, ना ही प्रेग्नेंसी पता लगाने की कोई तकनीक हुआ करती थी. इसीलिए इसके लिए लोग नेचुरल तरीकों का इस्तेमाल करते थे. आमतौर पर महिला को होने वाली बेचैनी और उल्टी जैसी चीजों से ये पता चलता था कि वो प्रेग्नेंट हो सकती है. ये तरीका आज भी कारगर है और आपने भी इसे देखा या फिर महसूस किया होगा. हालांकि अलग-अलग सभ्यताओं में अलग तरीके इस्तेमाल होते थे.
किस विटामिन की कमी से बाल नहीं बढ़ते हैं? एक ही जगह रुक गई है Hair Growth तो आज ही करा लें टेस्ट
क्या था गेहूं और जौ वाला टेस्ट?
गेहूं और जौ के बीजों का इस्तेमाल कर प्रेग्नेंसी का पता लगाने का चलन सबसे पहले प्राचीन मिस्र में शुरू हुआ था. ये उनकी परंपराओं पर आधारित था. इसमें महिला के मूत्र को डालकर गेहूं और जौ के बीजों को अंकुरित करने की कोशिश होती थी, अगर बीज अंकुरित हो गए तो माना जाता था कि महिला गर्भवती है. वहीं अगर अंकुरित नहीं हुए तो इसे नेगेटिव माना जाता था. इसी से लड़का और लड़की का पता भी लगाया जाता था. मान्यता थी कि गेहूं का बीज पहले अंकुरित हुआ तो लड़की होगी और जौ का बीज पहले आया तो लड़का पैदा होगा. हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था.
इन तरीकों का भी होता था इस्तेमाल
सैकड़ों साल पहले अलग-अलग देशों में रहने वाले अलग समुदायों का प्रेग्नेंसी पता करने का अपना तरीका था. कई जगह महिला की नब्ज देखकर इसका पता लगाया जाता था, वहीं कुछ जगहों पर यूरिन को जड़ी-बूटियों में मिलाकर टेस्ट किया जाता था. ज्यादातर मामलों में पीरियड मिस होने और शरीर में होने वाले बदलावों को देखकर ही प्रेग्नेंसी का पता लगता था. इसके बाद 1969 में पहली बार प्रेग्नेंसी किट का अविष्कार हुआ.