कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की जयंती पर Nitin Gadkari ने दी श्रद्धांजलि

हिंदी जगत के कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की जयंती पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने आज (गुरुवार) उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है.

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कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की जयंती पर Nitin Gadkari ने दी श्रद्धांजलि
रामधारी सिंह 'दिनकर' की जयंती पर Nitin Gadkari ने दी श्रद्धांजलि
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कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की जयंती आज
नितिन गडकरी ने ट्वीट कर दी श्रद्धांजलि
नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने कू ऐप पर ट्वीट दी श्रद्धांजलि
नई दिल्ली:

जयंती विशेष : आज (गुरुवार) रामधारी सिंह 'दिनकर' की 123वीं जयंती है. रामधारी सिंह (Ramdhari Singh) दिनकर राष्ट्र के, अध्यात्म के, जन के, पुराण के कवि हैं. गंगा किनारे बसे गांव सिमरिया जिला बेगूसराय के लाल राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उनकी कविताएं आज भी जीवंत और प्रासंगिक हैं. हर कोई उनके विद्धता का कायल है. जयंती के अवसर पर पूरा देश कवि दिनकर को श्रद्धांजलि दे रहा है. वहीं, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने भी  राष्ट्रकवि दिनकर को विनम्र श्रद्धांजलि दी है.

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने कू ऐप (Koo App) पर भेजे संदेश में कहा, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, पद्म भूषण पुरस्कारों से सम्मानित श्रेष्ठ हिंदी लेखक, कवि और निबंधकार रामधारी सिंह 'दिनकर' जी को जयंती पर विनम्र अभिवादन.

रामधारी सिंह 'दिनकर' का परिचय व पुरस्कार (Introduction And Awards Of Ramdhari Singh 'Dinkar')

  • रामधारी सिंह दिनकर ((Ramdhari Singh Dinkar)) का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में 23 सितंबर 1908 को  हुआ था.
  • उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास राजनीति विज्ञान में बीए किया.
  • उन्होंने अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत और बांग्ला का गहन अध्ययन किया था.
  • बीए के बाद वे अध्यापक बने.
  • उन्होंने बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्ट्रार व प्रचार विभाग के उपनिदेशक के पद पर भी काम किया.
  • वे मुजफ्फरपुर के एलएस कॉलेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष भी रहे.
  • उन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर भी कार्य किया.
  • भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार भी रहे रामधारी सिंह दिनकर.
  • रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar) को पद्म विभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया.
  • उनकी किताब संस्कृति के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया.
  • इसके साथ ही 'उर्वशी' के लिये भी भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया.
  • 24 अप्रैल 1974 को उन्होंने हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया.
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