Make Your Child Better in Math's : नम्बरों को लेकर समझ इंसान के अंदर बचपन से है. बच्चे छोटी उम्र से ज्यादा-कम, ऊंच-नीच में फर्क करने लगते है. स्कूल-कॉलेज में भी ज्यादातर बच्चों को मैथ्स एक बोझ लगती है. क्या आपने कभी सोचा ऐसा क्यूँ है, तो बता दें बच्चों में आत्मविश्वास की कमी, मैथ्स को आसान भाषा में समझने वाली किताबों की कमी, छोटी उम्र में गाइडेंस की कमी, इसकी मेन वजह यह है कि इसमें टिचर्स और पेरैंट्स को थोड़ा सा सावधान रहने की जरूरत है. जितनी छोटी उम्र में बच्चों के लिए ऐसी कोशिशें की जाएँगीं, उतनी ही यह सम्भावना बढ़ेगी कि वे गणित को पसंद करने लगेंगें. अगर आप भी चाहते हैं कि बड़ा होकर आपके बच्चे के मन में मैथ्स को लेकर कोई डर ना बैठे तो उसे छोटी उम्र से ही मैथ्स को मजेदार बनाने के ये टिप्स समझाएं.
मजेदार टिप्स से मैथ्स समझाएं | Explain Math's with Fun Tips
अपने बच्चे को मोबाइल पर कोई वीडियो दिखाने की जगह ब्लॉक से खेलने दें. जब वह ब्ल़ॉक से खेलेगा तो स्वाभाविक रूप से वह पैटर्न, शेप, सिमिट्री को समझना शुरू कर देगा. उसको समझाइएं कि उसके आसपास हर एक नंबर मौजूद हैं. फिर चाहे वह लिफ्ट का बटन हो, या किसी किताब का पेज नंबर और यहां तक कि फोन से भुगतान करते समय भी नंबर का इस्तेमाल किया जाता है. आपको अपने बच्चे से इन सभी नंबर और उनकी उपयोगिता के बारे में बात करनी चाहिए.
मैथ्स को बनाएं अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा | Math's Make a part of your life
घर का राशन लेने के लिए अपने बच्चे को साथ लेकर जरूर जाएं. वहां पर खरीदे गए सामान को उनसे जोडने के लिए कहें. पूरी शॉपिंग करने के बाद बच्चे से पूरा हिसाब पूछें. सही जवाब देने पर उन्हें छोटा सा इनाम दें, इसके अलावा घर के रोजमर्रा के काम करते हुए भी बच्चों को मैथ्स में बेहतर बनाया जा सकता है. जैसे कि डाइनिंग टेबल सेट करते समय उन्हें 4 प्लेट और 4 चम्मच रखने के लिए कहें. इसके बाद उनसे पूछें कि चार और चार कितने होते है. ये छोटे -छोटे खेल हम लोगों को बहुत ही आसान लगते हैं, लेकिन इससे बच्चों में यह समझ बढ़ेगी कि मैथ्स कोई काल्पनिक विषय नहीं है. बल्कि यह हमारी जिंदगी का एक हिस्सा है.
एक्सपर्ट के मुताबिक 2 साल से छोटे बच्चों को स्क्रीन से दूर रखें. ऐसा ना करने पर बच्चे की भाषा, ज्ञान और सोशल स्किल्स पर बुरा असर पड़ सकता है. वहीं उनका कहना है कि इस उम्र के बच्चों को वीडियो कॉल का एक्सपोजर भी सीमित मात्रा में दिया जाना चाहिए. बात अगर करें 2-5 साल तक के बच्चे की तो उन्हें एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन न देखने दें. हालांकि बच्चों को दिया जाने वाला ये स्क्रिन टाइम भी घर के किसी बड़े की देखरेख में दिया जाना चाहिए.
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.