Happy Birthday Jim Corbett : कौन हैं ये शख्सियत, जिनके नाम पर रखा गया भारत का पहला नेशनल पार्क?

Jim Corbett National Park: भारत में बहुत से नेशनल पार्क हैं. लेकिन जिम कॉर्बेट का नाम सबसे ऊपर आता है. चलिए जानते हैं इस नेशनल पार्क का नाम क्यों पड़ा जिम कॉर्बेट.

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जिम कॉर्बेट का पूरा नाम एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट था.

Jim Corbett National Park: आज अगर आप जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम सुनते हैं, तो आपके ज़ेहन में सबसे पहले सुंदर जंगल, बाघ, हिरण, हाथी और रोमांचक सफारी की तस्वीरें आती हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पार्क का नाम एक ऐसे इंसान के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने न सिर्फ इंसानों को आदमखोर बाघों से बचाया, बल्कि जंगली जानवरों के संरक्षण के लिए भी मिसाल कायम की. आज जिम कॉर्बेट (Jim  Corbett Birthdate) का जन्मदिन है. तो चलिए जानते हैं, कौन थे जिम कॉर्बेट और क्यों उनके नाम पर भारत का पहला नेशनल पार्क (National  Parks Of India) रखा गया.

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जिम कॉर्बेट कौन थे? (Who Was Jim corbett)


जिम कॉर्बेट का पूरा नाम एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट था. इनका जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल, उत्तराखंड (तब का ब्रिटिश इंडिया) में हुआ था. वह एक ब्रिटिश थे जो हंटिंग में एक्सपर्ट थे, प्रकृति से भी उन्हें बेहद लगाव था. साथ ही वो लेखक और वन्यजीव प्रेमी भी थे. उन्होंने अपना जीवन  एक बड़ा हिस्सा खासतौर पर उत्तर भारत के जंगलों में बिताया और यहां के आदमखोर बाघों और तेंदुओं से लोगों को बचाने का काम भी किया.

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शिकार से संरक्षण तक का सफर


जिम कॉर्बेट को शुरू में एक एक्सपर्ट हंटर के रूप में जाना जाता था. उन्होंने 19वीं और 20वीं सदी के बीच 33 से ज्यादा आदमखोर बाघों और तेंदुओं का शिकार किया. ये वो बाघ और तेंदुए थे जो कई लोगों को मार चुके थे. लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, उनका नज़रिया बदलता गया. उन्होंने महसूस किया कि ये जानवर आदमखोर इसलिए बनते हैं क्योंकि या तो वो घायल होते हैं या उनका प्राकृतिक घर नष्ट हो रहा होता है.
यहीं से उन्होंने शिकार छोड़कर वन्यजीव संरक्षण की दिशा में काम शुरू किया. जिम कॉर्बेट को समझ आ गया था कि जंगल और जानवर, दोनों की सुरक्षा ज़रूरी है.

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नेशनल पार्क का नाम क्यों पड़ा जिम कॉर्बेट?


1936 में ब्रिटिश सरकार ने भारत का पहला नेशनल पार्क स्थापित किया. जिसका नाम पहले हैली नेशनल पार्क रखा गया था. यह पार्क उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है. बाद में आज़ादी के बाद, 1957 में इस पार्क का नाम बदलकर ‘जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क' रख दिया गया.
ये सम्मान इसलिए दिया गया क्योंकि जिम कॉर्बेट ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा इन जंगलों को बचाने और उनके संरक्षण में लगाया था. उन्होंने अपने अनुभवों को किताबों के जरिए भी लोगों तक पहुंचाया.

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लेखनी में भी कमाल


जिम कॉर्बेट एक बेहतरीन लेखक भी थे. उन्होंने अपने शिकार और जंगल के अनुभवों को कई किताबों में दर्ज किया, जैसे:
•    “Man-Eaters of Kumaon”
•    “The Temple Tiger”
•    “Jungle Lore”
इन किताबों के जरिए उन्होंने लोगों को बताया कि जानवर आदमखोर क्यों बनते हैं और हमें उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए.

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आज भी जिंदा है उनकी विरासत

  • आज जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क सिर्फ एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन नहीं, बल्कि वन्यजीव संरक्षण का एक बड़ा केंद्र बन चुका है. यहां प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 1973 में हुई थी. जो भारत में बाघों की घटती संख्या को रोकने के लिए एक ऐतिहासिक कदम था.
  • जिम कॉर्बेट की सोच और समर्पण ने हमें यह सिखाया कि इंसान और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है.
  • जिम कॉर्बेट भले ही ब्रिटिश नागरिक थे, लेकिन भारत के जंगलों और यहां के लोगों के लिए उनका योगदान ऐसा है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. उनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि अगर इरादा नेक हो तो इंसान जानवरों का सबसे बड़ा दुश्मन नहीं, सबसे अच्छा रक्षक बन सकता है.

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