7वीं JPSC प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण का मामला, उच्च न्यायालय ने झारखंड लोक सेवा आयोग से मांगी रिपोर्ट

राज्य में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) झारखंड की सिविल सेवा परीक्षाओं में अनियमितता का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग कर रही है.

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भर्ती विज्ञापन में आरक्षण का कोई विवरण नहीं दिया गया था
रांची:

झारखंड उच्च न्यायालय ने सोमवार को झारखंड लोक सेवा आयोग (Jharkhand Public Service Commission ) को ये जानकारी देने का आदेश दिया कि क्या पिछले साल हुई सातवीं जेपीएससी प्रारंभिक परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों को आरक्षण दिया गया था. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. रवि रंजन और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने जेपीएससी से ये रिपोर्ट भी मांगी कि आरक्षित वर्ग के कितने उम्मीदवारों का चयन सामान्य वर्ग में किया गया है. कुमार संयम द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने लोक सेवा आयोग को अदालत के समक्ष एक हलफनामे के माध्यम से श्रेणीवार सीट विवरण देने का भी आदेश दिया. पीठ को सूचित किया गया कि आयोग द्वारा प्रारंभिक परीक्षा आयोजित करने के लिए प्रकाशित विज्ञापन में आरक्षण का कोई विवरण प्रकाशित नहीं किया गया था.

अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने मामले की पैरवी करते हुए दावा किया कि सरकार के पास प्रारंभिक परीक्षा में बैठने वाले उम्मीदवारों के लिए आरक्षण की कोई नीति नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि सामान्य वर्ग में 114 सीट थीं और मानदंडों के अनुसार, परिणाम आवंटित सीट का 15 गुना होना चाहिए था. वत्स ने कहा कि कम से कम 1,710 उम्मीदवारों का चयन किया जाना चाहिए था, लेकिन केवल 768 उम्मीदवारों को ही सफल घोषित किया गया है.

राज्य में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) झारखंड की सिविल सेवा परीक्षाओं में अनियमितता का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग कर रही है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिछले महीने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) परीक्षा संबंधी विवाद पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि भाजपा हंगामा कर रही है क्योंकि चयनित 4,000 उम्मीदवारों में से 3,000 आरक्षित श्रेणियों से हैं.

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विधानसभा के 16 से 22 दिसंबर तक चले शीतकालीन सत्र के दौरान काफी हंगामा हुआ था जिसमें भाजपा ने राज्य सिविल सेवा परीक्षाओं में अनियमितता का आरोप लगाया था. सोरेन ने आरोप लगाते हुए कहा था कि 'मनुवादी मानसिकता' वाले लोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उम्मीदवारों की सफलता को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि जेपीएससी द्वारा बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के परीक्षा आयोजित की गई थी. सोरेन ने आरोप लगाया था कि पुलिस उपाधीक्षक की नियुक्तियां भाजपा शासन के दौरान किसी भी परीक्षा के बिना की गई थीं, जिसकी सीबीआई जांच चल रही है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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