बिहार में मात्र 0.2 वोटों के अंतर से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए, तेजस्वी यादव के अगुवाई में लड़ रहे महागठबंधन को 15 सीटों के अंतर से पराजित कर एक बार फिर सरकार बनाएगी. नीतीश बिहार की राजनीति में पहले मुख्यमंत्री हैं जिनके नाम और चेहरे पर जनता ने चार बार लगातार जनादेश दिया है. लेकिन इस बार की जीत नीतीश कुमार के लिए कई कारणों से सुखद रही होगी क्योंकि ना केवल वो अपने घोषित विरोधी को परास्त करने में सफल रहे बल्कि उनके समर्थकों की मानें तो सहयोगियों, ख़ासकर भाजपा के चक्रव्यूह को भी भेदने में वो कामयाब रहे. जीत का जश्न जब बुधवार को दिल्ली में मनाया जा रहा था तब पहली बार नीतीश कुमार ने ट्वीट किया और कहा कि
अब तो नीतीश के विरोधी भी मान रहे हैं कि भले जनता दल यूनाइटेड के 43 उम्मीदवार ही जीत पाये लेकिन इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से चिराग़ पासवान और भाजपा के नेताओं का दिमाग़ और असहयोग भी मुख्य कारण रहा है. वो चाहे बिहार जनता दल यूनाइटेड के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी हों या उपमुख्यमंत्री और बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी, सबने माना कि चिराग़ के कारण भाजपा की तुलना में जनता दल यूनाइटेड को कम सीटें आई हैं. लेकिन ये भी सच है कि एक ओर चिराग़ वोट काट रहे थे तो दूसरी और भाजपा समर्थित वोटर के उदासीन रवैये के कारण भी 40 से अधिक सीटों पर नीतीश के उम्मीदवार हारे.
जनता दल यूनाइटेड का कहना है कि, 'हमारे तीन सहयोगी थे तो भाजपा के चार घोषित, जिनमें चिराग़ पासवान शामिल हैं, और कई अघोषित सहयोगी उनके मन मुताबिक़ उम्मीदवार खड़ा कर इस चुनाव में उन्हें जिताने का काम कर रहे थे. भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने माना कि जब आप गठबंधन में रहते हैं तो आपका स्ट्राइक रेट अच्छा है और सहयोगी का ख़राब तो इसका मतलब उसका आधारभूत वोट तो आपको मिला लेकिन आप अपना वोट उसे दिलाने में कामयाब नहीं रहे. और उनका कहना है कि अगर बिहार चुनाव ने, जिसे सामाजिक समीकरण के आधार पर एक तरफ़ा एनडीए के पक्ष में होना चाहिए था, इस बार भाजपा के 'चिराग़ प्रयोग' के कारण ना केवल नीतीश को नुक़सान पहुंचाया बल्कि भाजपा की जीत में भी चिराग़ के वोट ने एक अहम भूमिका अदा की है.