दुनिया का सबसे पहला हॉस्टल वाला कॉलेज, यकीन नहीं होगा नाम जानकर, क्या से क्या हो गया

दुनिया का पहला हॉस्टल वाला कॉलेज भारत में था. यहां 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी और 2700 शिक्षक रहते थे. 9 मंजिला विशाल लाइब्रेरी और यहां की पढ़ाई विदेशी छात्रों के आकर्षक का भी केंद्र था. यहां चीन, जापान, कोरिया जैसे देशों से छात्र यहां पढ़ने आते थे.

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नई दिल्ली:

World's First Hostel College: क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे पहला हॉस्टल वाला कॉलेज कौन सा था. जानकर हैरानी होगी कि आज से करीब 1500 साल पहले, जब न इंटरनेट था, न बिजली, न हाईटेक क्लासरूम, तब भारत में एक ऐसा विश्वविद्यालय था, जहां दुनिया के कोने-कोने से छात्र पढ़ने आते थे और हॉस्टल में रहते थे. इसका नाम नालंदा विश्वविद्यालय है. दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय (Residential University), जिसे 5वीं सदी में गुप्त वंश के राजा कुमारगुप्त प्रथम ने स्थापित किया था. जानिए इसका दिलचस्प इतिहास और अब किस हालत में है.

9 मंजिला लाइब्रेरी और हजारों कमरे

नालंदा सिर्फ एक यूनिवर्सिटी नहीं थी, बल्कि एक जीवंत शहर थी, जहां ज्ञान की गूंज हर ओर सुनाई देती थी. यहां 9 मंजिला विशाल लाइब्रेरी थी, जिसका नाम 'धर्म गुञ्ज' यानी 'सत्य की गूंज'था. इस लाइब्रेरी के तीन भाग थे, रत्नरंजक, रत्नोदधि और रत्नसागर, जिनमें लाखों ग्रंथ रखे गए थे. यूनिवर्सिटी में करीब 10 हजार विद्यार्थी और 2700 शिक्षक थे. सभी के लिए बिल्कुल फ्री पढ़ाई, रहना और खाना था. यहां किताबें सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि चीन, तिब्बत, जापान, ईरान और ग्रीस तक से लाई जाती थीं.

विदेशी छात्र और महान विद्वान

उस समय नालंदा में पढ़ने आना किसी सपने से कम नहीं था. यहां कोरिया, जापान, चीन और मंगोलिया जैसे देशों से छात्र आते थे. यहां से पढ़कर निकले कुछ नाम आज भी इतिहास में दर्ज हैं. इनमें धर्मकीर्ति, नागार्जुन, वसुबन्धु, हर्षवर्धन और चीन के प्रसिद्ध यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) शामिल हैं, जिन्होंने यहां के ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया.

कौन-कौन से विषय पढ़ाए जाते थे

नालंदा सिर्फ धर्म या दर्शन का केंद्र नहीं था, यह मल्टी-डिसिप्लिन यूनिवर्सिटी थी. यहां साहित्य और इतिहास, गणित और अर्थशास्त्र, ज्योतिष और खगोलशास्त्र, मनोविज्ञान और विधि (Law) और वो सभी विषय पढ़ाए जाते थे, जो ज्ञान की परिभाषा को बढ़ाता था.

कैसे जल गई नालंदा यूनिवर्सिटी

इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक इस ज्ञान के इस मंदिर का जलना है. जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया. कहा जाता है कि तीन महीने तक नालंदा की लाइब्रेरी जलती रही, क्योंकि वहां इतनी किताबें थीं कि आग बुझी ही नहीं. इसके बाद मानो सबकुछ खत्म हो गया.

आधुनिक नालंदा की वापसी

2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने नालंदा को फिर से जीवित करने का प्रस्ताव रखा. इसके बाद सिंगापुर, जापान और कई एशियाई देशों ने इस प्रोजेक्ट में रुचि दिखाई. 2007 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में इसे लेकर 16 देशों ने समर्थन किया और आखिरकार 1 सितंबर 2014 को नालंदा विश्वविद्यालय ने राजगीर (बिहार) में अपना नया शैक्षणिक सत्र शुरू किया.

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400 एकड़ में बना आधुनिक नालंदा

आज का नालंदा, पुराने गौरव और नई तकनीक का संगम है. इसका नया कैंपस 160 हेक्टेयर (लगभग 400 एकड़) में बना है. इसमें हाईटेक क्लासरूम, डिजिटल लाइब्रेरी और इको-फ्रेंडली बिल्डिंग्स हैं. यह फिर से एशिया का 'ज्ञान केंद्र' बनने की ओर बढ़ रहा है. राजगीर की शांत पहाड़ियों के बीच उभरता यह नया नालंदा भारत के बुद्धिमत्ता और सभ्यता का जीवंत प्रतीक बन रहा है.

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