संविधान निर्माण में इन 15 महिलाओं ने दिया अहम योगदान, जान लें उनके नाम

भारत के संविधान निर्माण में 15 महिलाओं ने अहम योगदान दिया. इनमें अम्मू स्वामीनाथन, सरोजिनी नायडू, हंसा मेहता, सुचेता कृपलानी जैसी महिलाएं शामिल थीं. इन्होंने शिक्षा, बराबरी, महिला अधिकार, स्वास्थ्य और धर्मनिरपेक्षता पर अपनी आवाज़ उठाई.

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भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने महिलाओं की शिक्षा और राजनीतिक हकों की आवाज उठाई.

Contribution of women in Indian constitution: भारत का संविधान सिर्फ कागज पर लिखे नियम नहीं हैं, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र की असली ताकत है. इसे बनाने के लिए 1946 में संविधान सभा बनाई गई थी. विभाजन के बाद इसमें 299 सदस्य बचे, जिनमें 15 महिलाएं भी थीं. ये महिलाएं अलग-अलग राज्यों और समाज से आई थीं और इन्होंने शिक्षा, समानता, महिला अधिकार, स्वास्थ्य और न्याय जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखी.

अम्मू स्वामीनाथन

केरल की अम्मू स्वामीनाथन ने कहा कि दुनिया चाहे कुछ भी कहे, लेकिन हमारा संविधान साबित करेगा कि महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर हक मिले हैं.

सरोजिनी नायडू

भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने महिलाओं की शिक्षा और राजनीतिक हकों की आवाज उठाई. वह महिलाओं के अधिकारों की बड़ी पैरोकार थीं.

बेगम कुदसिया एजाज रसूल

सभा में शामिल एकमात्र मुस्लिम महिला बेगम कुदसिया ऐजाज रसूल ने धर्मनिरपेक्ष भारत की वकालत की और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर जोर दिया.

हंसा जीवराज मेहता

हंसा मेहता ने सुनिश्चित किया कि संविधान में महिलाओं और पुरुषों को बराबर अधिकार दिए जाएं.

सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी, जो आगे चलकर देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं, ने महिलाओं की शिक्षा और कामगार वर्ग के हकों पर बहस की.

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दुर्गाबाई देशमुख

दुर्गाबाई देशमुख ने लड़कियों की पढ़ाई और महिला कल्याण योजनाओं पर सुझाव दिए.

विजयलक्ष्मी पंडित

विजयलक्ष्मी पंडित ने सभा में भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका और महिलाओं की स्थिति पर बात रखी.

राजकुमारी अमृत कौर

राजकुमारी अमृत कौर ने स्वास्थ्य सेवाओं और महिला अधिकारों पर जोर दिया. उन्होंने आधुनिक स्वास्थ्य ढांचे की नींव रखने में योगदान दिया.

एनी मस्कारेन

एनी मस्कारेन ने महिलाओं और मजदूरों के हकों की बात की.

रेणुका रे

रेणुका रे ने महिलाओं की कानूनी और आर्थिक स्थिति मजबूत करने पर बल दिया.

पूर्णिमा बनर्जी

पूर्णिमा बनर्जी ने गरीबों और महिलाओं के लिए न्याय की मांग की.

लीला रॉय

लीला रॉय ने महिला शिक्षा और समाज सुधार को आगे बढ़ाया.

मालती चौधरी

मालती चौधरी ने शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखी.

दक्षायनी वेलायुधन

दक्षायनी वेलायुधन, जो सभा की पहली दलित महिला थीं, ने छुआछूत का विरोध किया और वंचित समाज की आवाज बनीं.

इन सभी महिलाओं ने न सिर्फ संविधान को मजबूत बनाया बल्कि आने वाले भारत की दिशा भी तय की. शिक्षा, बराबरी, धर्मनिरपेक्षता और महिला अधिकारों पर उनका योगदान आज भी हमारे लोकतंत्र की ताकत है. सच कहा जाए तो ये महिलाएं भारत की असली निर्माता हैं.

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