कर्नाटक में इन भर्तियों पर लगी रोक, आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

Karnataka Recruitment: कर्नाटक में भर्तियों में दिए जाने वाले आरक्षण को लेकर कोर्ट में याचिकाएं दायर हुई थीं, जिसमें कहा गया था कि राज्य में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत के पार पहुंच गई है.

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कर्नाटक में नई भर्तियों को लेकर फैसला

Karnataka Recruitment: कर्नाटक में एससी, एसटी के लिए आरक्षण बढ़ाने वाले कानून के तहत निकलने वाली नई भर्तियों पर अब रोक लगा दी गई है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने नई भर्तियों को लेकर नोटिफिकेशन जारी करने पर भी रोक लगा दी है. यानी राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण बढ़ाने वाले अधिनियम के तहत अब कोई भर्ती नहीं होगी. इस फैसले को राज्य सरकार के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है.

पुरानी भर्तियों पर फिलहाल नहीं लगाई रोक

हालांकि, हाईकोर्ट ने सरकार को 19 नवंबर 2025 से पहले अधिसूचित भर्ती प्रक्रियाओं को जारी रखने की अनुमति दे दी, भले ही उनमें बढ़ा हुआ आरक्षण लागू होता हो. कोर्ट ने साफ किया कि इन भर्तियों के जरिए की जाने वाली सभी नियुक्तियां कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी. चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस सीएम पूनाचा की बेंच ने रायचूर के महेंद्र कुमार मित्रा और बेंगलुरु निवासी महेश की ओर से दायर दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 27 नवंबर को अंतरिम आदेश जारी किया.

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आरक्षण को लेकर सवाल

दोनों याचिकाओं में 2022 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया गया है, खास तौर पर एससी के लिए आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और एसटी के लिए आरक्षण तीन प्रतिशत से बढ़ाकर सात प्रतिशत किए जाने पर. कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 32 प्रतिशत कोटा बरकरार रखा गया है, जिससे राज्य में कुल आरक्षण 56 प्रतिशत हो जाता है.

बेंच ने निर्देश दिया कि अधिनियम के तहत जारी सभी नियुक्ति या पदोन्नति आदेशों में इस बात का स्पष्ट रूप से जिक्र होना चाहिए कि वे अनंतिम हैं और अदालत के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेंगे, ताकि बढ़े हुए कोटे को रद्द किए जाने की स्थिति में उम्मीदवारों को समानता का दावा करने से रोका जा सके.

सरकारी ने दी थी ये दलील

अदालत ने स्पष्ट किया कि चल रही भर्तियों को जारी रखने की यह अंतरिम अनुमति संबंधित मामलों में अदालतों या न्यायाधिकरणों की ओर से पहले से पारित किसी भी विशिष्ट अंतरिम या अंतिम आदेश के आड़े नहीं आएगी. कर्नाटक सरकार ने पहले दलील दी थी कि जारी भर्तियों को रोकने से जनशक्ति की कमी के कारण प्रशासनिक कामकाज बाधित होगा. याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि बढ़ा हुआ आरक्षण इंद्रा साहनी मामले में उच्चतम न्यायालय की ओर से निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है.
 

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