भारत के ‘दानवीर’ जमशेदजी जीजाभाई, जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत से मिली थी ‘नाइट’ और ‘बैरोनेट’ की उपाधि

जमशेदजी जीजाभाई 19वीं सदी के एक प्रसिद्ध भारतीय व्यापारी और सामाजिक सुधारक थे, जिन्हें सर जमशेदजी जीजाभाई (प्रथम बैरोनेट) के नाम से भी जाना जाता है. वे भारत के पहले बैरोनेट थे, जिन्हें ब्रिटिश साम्राज्य ने उनकी परोपकारी सेवाओं के लिए ‘नाइट’ और ‘बैरोनेट’ की उपाधि से सम्मानित किया था.

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नई दिल्ली:

Jamshedji Jijabhai: जमशेदजी जीजाभाई 19वीं सदी के एक प्रसिद्ध भारतीय व्यापारी और सामाजिक सुधारक थे, जिन्हें सर जमशेदजी जीजाभाई (प्रथम बैरोनेट) के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने अपने व्यापारिक कौशल और उदार दानशीलता के माध्यम से न केवल अपार धन-संपत्ति अर्जित की, बल्कि समाज के उत्थान के लिए अपने संसाधनों का उपयोग भी किया. वे भारत के पहले बैरोनेट थे, जिन्हें ब्रिटिश साम्राज्य ने उनकी परोपकारी सेवाओं के लिए ‘नाइट' और ‘बैरोनेट' की उपाधि से सम्मानित किया था.

कम उम्र में ही अनाथ हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके मामा ने की

15 जुलाई 1783 को मुंबई (पूर्व में बॉम्बे) में एक पारसी परिवार में पैदा हुए जमशेदजी जीजाभाई का जीवन व्यापार, परोपकार और सामाजिक सुधार के कार्यों में लगा रहा. उनके माता-पिता, जीवाजी और बानुबाई, साधारण परिस्थितियों में जीवन यापन करते थे. हालांकि, कम उम्र में ही अनाथ हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके मामा ने की. उन्होंने शिक्षा तो ज्यादा हासिल नहीं की, लेकिन अपने कठिन परिश्रम और बुद्धिमानी से व्यापार की दुनिया में जल्द ही अपनी पकड़ बना ली.

15 साल की उम्र में शुरू की  व्यावसायिक यात्रा

महज 15 साल की उम्र में उनकी व्यावसायिक यात्रा की शुरुआत हुई. बताया जाता है कि जमशेदजी ने अपने व्यापार की शुरुआत कपास और अफीम के निर्यात से की. उन्होंने अपने मामा के साथ मिलकर पूर्वी एशिया, खासकर चीन का दौरा किया. साल 1805 आते-आते उन्होंने खुद की कंपनी भी बना ली और जल्द ही उनकी गिनती बॉम्बे के प्रमुख व्यापारियों में होने लगी. उन्होंने बहुत कम समय में कपास, अफीम, मसाले और अन्य वस्तुओं के व्यापार में विशेषता हासिल कर ली.उनकी ईमानदारी और विश्वसनीयता ने उन्हें ब्रिटिश और स्थानीय व्यापारियों के बीच पहचान दिलाई.

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जमशेदजी जीजाभाई ने खुलकर दान किया

हालांकि, व्यापार में सफलता के झंडे गाड़ने के साथ-साथ जमशेदजी जीजाभाई ने खुलकर दान भी किया. उन्होंने अपने धन का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कल्याण के लिए दान किया. उन्होंने मुंबई में जेजे हॉस्पिटल की स्थापना के लिए एक बड़ा दान दिया. इसके अलावा, जेजे स्कूल ऑफ आर्ट संस्थान की स्थापना में योगदान दिया. साथ ही उन्होंने पारसी समुदाय और अन्य समुदायों के लिए कई धर्मशालाएं, स्कूल और अनाथालय भी स्थापित किए. उनकी परोपकारिता इतनी व्यापक थी कि कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में लाखों रुपए दान किए, जो उस समय की अर्थव्यवस्था में एक बहुत बड़ी राशि थी.

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जमशेदजी जीजाभाई को उनके योगदान के लिए ब्रिटिश सरकार से कई सम्मान भी प्राप्त हुए। 1842 में उन्हें ‘नाइट' की उपाधि दी गई और 1857 में वे भारत के पहले व्यक्ति बने, जिन्हें ‘बैरोनेट' की उपाधि मिली। इसके अलावा, उन्हें मुंबई के जस्टिस ऑफ पीस और विधायी परिषद के सदस्य के रूप में भी नियुक्त किया गया। उनके सम्मान में मुंबई में कई सड़कों और संस्थानों का नाम उनके नाम पर रखा गया है. जमशेदजी जीजाभाई ने 14 अप्रैल 1859 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है.

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