कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है...पढ़िए गोपाल दास नीरज की शानदार कविता

Hindi Poem: हिंदी कविता पढ़ने के शौकिन लोगों के लिए इस बार हम आपके लिए लेकर आए हैं गोपाल दास नीरज की सबसे सुंदर रचना. जो जीवन के प्रति आपके सोच को बदल सकती है.

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नई दिल्ली:

Hindi Poetry: हिंदी के बेहद लोकप्रिय गीतकार, पद्म भूषण समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित गोपाल दास नीरज की कविताएं काफी प्रचलित हैं. उनकी रचनाएं दिलों को छू जाती हैं. कविताएं सोशल मीडिया पर वायरल रहती हैं.  उन्होंने कई फिल्मों के लिए गाने लिखे, फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा. उनकी इन दिनों एक कविता काफी वायरल हो रही है. जो जीवन के संघर्षों से लड़ रहे लोगों को मोटिवेट करेगा. 

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

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खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

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लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

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लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!

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