सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल यूनिवर्सिटीज को फाइनल ईयर की पोस्ट ग्रेजुएशन परीक्षाओं को इस आधार पर रद्द करने या स्थगित करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया कि परीक्षार्थी-डॉक्टर COVID-19 की ड्यूटी में लगे हुए हैं.
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि वह सभी विश्वविद्यालयों को फाइनल ईयर की पोस्ट ग्रेजुएशन मेडिकल परीक्षा आयोजित नहीं करने या स्थगित करने का कोई सामान्य आदेश नहीं दे सकती.
शीर्ष अदालत ने कहा कि नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) ने अप्रैल में पहले ही एक एडवाइजरी जारी कर देश के विश्वविद्यालयों से फाइनल ईयर की परीक्षा की तारीखों की घोषणा करते समय कोविड की स्थिति को ध्यान में रखने को कहा है.
बेंच ने कहा, "हमने जहां संभव हो वहां हस्तक्षेप किया है जैसे एम्स, नई दिल्ली द्वारा आयोजित INI CET परीक्षा को एक महीने के लिए स्थगित करना, जहां हमने पाया है कि छात्रों को तैयारी के लिए उचित समय दिए बिना परीक्षा की तारीख तय करने का कोई औचित्य नहीं था."
इसने रिट याचिका दायर करने वाले 29 डॉक्टरों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े की इस दलील को खारिज कर दिया कि NMC को सभी विश्वविद्यालयों को परीक्षा की तैयारी के लिए छात्रों को उचित समय देने का निर्देश जारी करने का निर्देश दिया जाए.
शीर्ष अदालत ने कहा, “भारत जैसे विशाल देश में महामारी की स्थिति एक जैसी नहीं हो सकती है. अप्रैल-मई में दिल्ली में हालात बहुत खराब थे लेकिन अब मुश्किल से 200 केस प्रतिदिन हैं. हालांकि कर्नाटक में अभी भी स्थिति उतनी अच्छी नहीं है. इसलिए, हम विश्वविद्यालयों को सुने बिना कोई सामान्य आदेश पारित नहीं कर सकते.
NMC की ओर से पेश वकील गौरव शर्मा ने कहा कि सभी डॉक्टर COVID ड्यूटी में नहीं लगे थे और परिषद ने अप्रैल में सभी विश्वविद्यालयों को अपने-अपने क्षेत्रों में COVID स्थिति को ध्यान में रखते हुए परीक्षा आयोजित करने के लिए एक सलाह जारी की थी.
एडवोकेट हेगड़े ने कहा कि चूंकि डॉक्टर COVID ड्यूटी में लगे थे, इसलिए वे परीक्षा की तैयारी नहीं कर पा रहे थे, जिससे वे सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर बन सकेंगे। शुरुआत में, पीठ ने स्पष्ट किया कि वह बिना परीक्षा में शामिल हुए डॉक्टरों को पदोन्नत करने की अनुमति नहीं दे रही है.
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