सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) के सुपर-स्पेशियलिटी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए ‘कट-ऑफ पर्सेंटाइल' को कम करने से इनकार कर दिया और कहा कि डॉक्टरों को मरीज के जीवन को बचाना होता है तथा योग्यता की अनदेखी नहीं की जा सकती. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि ‘पर्सेंटाइल' को कम नहीं करने का फैसला लिया गया है जो अकादमिक नीति का मामला है और इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता है.
पीठ ने कहा कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा बताए गए कारणों को अप्रासंगिक और मनमाना नहीं माना जा सकता क्योंकि 'डॉक्टरों को मरीजों के जीवन को बचाना होता है और योग्यता की अनदेखी नहीं की जा सकती है.''पीठ ने कहा, “रिक्त सीटों पर काउंसलिंग के लिए उम्मीदवार पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं, लेकिन पर्सेंटाइल को कम नहीं करने का निर्णय योग्यता से समझौता नहीं करने पर आधारित है. क्या पर्सेंटाइल को और कम किया जाना चाहिए, यह अकादमिक नीति का मामला है. ऐसी परिस्थितियों में पर्सेंटाइल को कम करने के निर्देश की खातिर एक याचिका पर विचार करना अदालत के लिए संभव नहीं है.”
‘कट-ऑफ' कम करने का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी. एस. पटवालिया ने दलील दी कि शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए कुल सीट में से 940 सीट अभी भी खाली हैं. उन्होंने कहा कि अगर ‘कट ऑफ' कम नहीं किया गया तो ये सीटें ऐसे समय बेकार चली जाएंगी जब देश को डॉक्टरों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि समय-समय पर ‘कट-ऑफ' में कमी की जाती रही है और मंत्रालय ने इस साल अन्य पाठ्यक्रमों के लिए ‘कट-ऑफ' कम किया है.
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि शैक्षणिक वर्ष 2019-20 के दौरान ‘कट-ऑफ पर्सेंटाइल' को घटा दिया गया था ताकि कोविड के कारण खाली सीट की संख्या को 809 से घटाकर 272 किया जा सके. उन्होंने कहा कि शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए, ‘पर्सेंटाइल' को 50 से घटाकर 45 कर दिया गया था जिससे खाली सीट घटकर 91 हो गईं जो पहले 900 से अधिक थीं.