तीन दशकों से भी अधिक के अंतराल के बाद भारतीय शिक्षा व्यवस्था को प्राचीन भारत की ज्ञान परंपरा के साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने वाली नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन में अभी और विलंभ होता नजर आ रहा है.
दरअसल, इस नीति के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले केंद्रीय विश्वविद्यालय ही इन दिनों स्थायी नेतृत्व की समस्या से जूझ रहे हैं. आलम यह हैं कि देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से 19 ऐसे हैं जहां कार्यवाहक कुलपति कामकाज देख रहें हैं.
देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में शामिल जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में भी कुलपति का पद महीनों से रिक्त है.
मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार शिक्षा मंत्री की ओर से एक बार फिर से नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में कदम बढ़ाया जा रहा है और इसे लेकर आगामी सोमवार को राज्यों के शिक्षा सचिवों व मंगलवार को केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के साथ वह ऑनलाइन संवाद करने की तैयारी में है. मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में हो रहे विलंब से मंत्रालय की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं.
ऐसे में मंत्रालय इस दिशा में ठोस कार्यवाही कर बिगाड़ रही हालात को सुधारने की कोशिश कर रहा है. इन बैठकों में कोरोना महामारी के चलते बने हालात और उनके परिणामस्वरूप विभिन्न परीक्षाओं व दाखिला प्रक्रिया के विषय में भी चर्चा होगी.
हालांकि बात जहां तक नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की है तो जिस तरह से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू व कश्मीर में रिक्त कुलपति के पद को जल्द भरे जाने की मांग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जोकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छात्र संगठन है के द्वारा की जा रही है उससे साफ है कि मंत्रालय के स्तर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्थायी कुलपतियों की लटकी पड़ी नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर अब शिक्षण संस्थानों में असंतोष बढ़ रहा है.
आलम यह है कि केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल, केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण बिहार, केंद्रीय विश्वविद्यालय हरियाणा, हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय में तो कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया के लिए आवश्यक साक्षात्कार की प्रक्रिया को भी पूर्ण हुए छह महीने से अधिक का समय बीत चुका है बावजूद इसके नई शिक्षा नीति के कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले केंद्रीय विश्वविद्यालयों को नए कुलपति कब तक मिलेंगे यह स्पष्ट नहीं है।. ऐसे में मंत्रालय के प्रयास किस हद तक जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की दिशा में बढ़ पाते है यह देखने वाली बात होगी.