B-Tech के छात्र का कमाल, बनाया माइक-स्पीकर वाला अनोखा मास्क, बात करने में होगी आसानी

केरल के त्रिशूर गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज के पहले वर्ष के बी टेक के छात्र केविन जैकब ने अपनी सूज-बूझ से तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एक खास तरह का इनोवेटिव मास्क तैयार किया है,

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B-Tech के छात्र ने बनाया माइक-स्पीकर वाला अनोखा मास्क.
नई दिल्ली:

कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए मास्क पहनना बेहद जरूरी और अनिवार्य है. हालांकि, कई लोगों के लिए हर समय मास्क पहने रखना काफी मुश्किल हो रहा है. खासकर उन डॉक्टरों के लिए, जिन्हें कोरोना संक्रमण के मरीजों का इलाज करते समय खुद को सुरक्षित रखने के लिए मल्टी लेयर मास्क पहनना पड़ते है.  

लेकिन इस बीच केरल के त्रिशूर गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज के पहले वर्ष के बी टेक के छात्र केविन जैकब ने अपनी सूज-बूझ से तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एक खास तरह का इनोवेटिव मास्क तैयार किया है, जिसका हर कोई कायल हो रहा है. इस मास्क की खास बात यह है कि इसमें माइक और स्पीकर दोनों लगाए गए हैं. 

जैकब के माता-पिता दोनों डॉक्टर्स हैं. ANI से बात करते हुए, जैकब ने कहा कि उन्हें इस तरह का मास्क बनाने का विचार तब आया जब उन्होंने अपने माता-पिता को अपने मरीजों के साथ बातचीत करते में कठिनाइयों का सामना करते देखा.

उन्होंने कहा, "मेरे माता-पिता डॉक्टर हैं और महामारी की शुरुआत से ही वे अपने मरीजों से बात करने में संघर्ष कर रहे हैं. मल्टी लेयर मास्क और फेस शील्ड लगाकर अपनी बात को मरीजों के सामने क्लियर करना उनके लिए मुश्किल हो रहा था. ये सब देखकर मेरे दिमाग में इस तरह का मास्क बनाने का आइडिया आया."

उन्होंने कहा अपने माता-पिता डॉ सेनोज केसी और डॉ ज्योति मैरी जोस के साथ पहले प्रोटोटाइप का परीक्षण किया और मांग बढ़ने पर उन्होंने कई और बनाना शुरू कर दिए.

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उन्होंने बताया तीस मिनट तक चार्ज करने पर लगातार चार से छह घंटे तक मास्क में लगा माइक और स्पीकर इस्तेमाल किया जा सकता है. चुंबक का उपयोग करके मास्क में माइक को लगाया गया है.

जैकब ने कहा, "डॉक्टरों ने मास्क के बारे में अपना फीडबैक भी दिया है. उन्होंने कहा है कि उन्हें मरीजों  को सुनने के लिए जोर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है और वे आसानी से अपने मरीजों के साथ बात-चीत कर पाते हैं. कुल मिलाकर यूजर्स का फीडबैक पॉजिटिव रहा है."

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उन्होंने आगे कहा, "मैंने 50 से अधिक ऐसे मास्क बनाए हैं, जिनका उपयोग मुख्य रूप से दक्षिण भारत के डॉक्टर कर रहे हैं. फिलहाल मेरे पास इन डिवाइसेस को बड़े पैमाने पर बनाने के लिए उपकरण नहीं है. लेकिन अगर कोई बड़ी कंपनी इस छोटे से प्रोजेक्ट में मेरी मदद करती है, तो मुझे यकीन है कि इससे बहुत से लोगों को मदद मिल सकती है."
 

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