बॉलीवुड ने अपने एक और चमकते सितारे को खो दिया. मशहूर अभिनेता गोवर्धन असरानी, जिन्हें प्यार से सिर्फ असरानी कहा जाता था अब वह इस दुनिया में नहीं रहे. उनका 20 अक्टूबर को 84 साल की उम्र में निधन हो गया. अपनी शानदार कॉमेडी और बेमिसाल अभिनय से लाखों दर्शकों को हंसाने वाले असरानी ने हिंदी सिनेमा में एक ऐसी छाप छोड़ी, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. 1 जनवरी 1940 को जयपुर में एक मध्यमवर्गीय सिंधी परिवार में जन्मे असरानी का बचपन साधारण परिस्थितियों में बीता. उनके पिता एक कालीन का कारोबार चलाते थे, लेकिन असरानी का मन हमेशा अभिनय की ओर खींचा.
उन्होंने 1960 से 1962 तक साहित्य कलबाई ठक्कर से अभिनय की ट्रेनिंग ली. इसके बाद 1964 में वे पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) में दाखिल हुए. इस ट्रेनिंग ने असरानी के करियर की मजबूत नींव रखी, जिसके बल पर उन्होंने हिंदी और गुजराती सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाई. हालांकि, असरानी का मुंबई में शुरुआती समय आसान नहीं था. एक इंटरव्यू में असरानी ने बताया कि FTII से डिग्री लेने के बाद भी उन्हें दो साल तक काम की तलाश में संघर्ष करना पड़ा.
उस समय की मुश्किलों को याद करते हुए असरानी ने बताया कि कैसे उन्होंने और कुछ अन्य युवा अभिनेताओं ने तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी से पुणे में मुलाकात की. इंदिरा गांधी ने निर्माताओं को FTII के ट्रेनिंग ले रहे कलाकारों को मौका देने की अपील की, जिसके बाद असरानी को जया भादुरी के साथ फिल्म "गुड्डी" में काम मिला. यह फिल्म उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई और इससे ट्रेनिंग ले रहे कलाकारों के लिए इंडस्ट्री में नए दरवाजे खुले. असरानी ने 1967 में फिल्म "हरे कांच की चूड़ियां" से बॉलीवुड में कदम रखा, जिसमें उन्होंने अभिनेता विश्वजीत के दोस्त की भूमिका निभाई. इसके बाद उन्होंने कई गुजराती फिल्मों में मुख्य भूमिकाएं कीं और फिर हिंदी सिनेमा में अपनी जगह बनाई. 350 से ज्यादा फिल्मों में काम करने वाले असरानी अपनी कॉमिक भूमिकाओं के लिए हमेशा याद किए जाएंगे. उनकी हाव-भाव, हास्य का समय और स्वाभाविक अभिनय दर्शकों के दिलों में बसा.