बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन को सुपरस्टार बनाने में सबसे बड़ा हाथ मशहूर डायरेक्टर मनमोहन देसाई का था. अमर अकबर एंथनी, नसीब, कूलि, सुहाग, दीवार और डॉन जैसी सुपरहिट फिल्में इन्हीं दोनों की जोड़ी ने दी थीं. ये फिल्में देखते ही देखते ब्लॉकबस्टर बन जाती थीं और लोग थिएटर में लाइन लगाकर टिकट लेते थे. लेकिन 1988 में आई उनकी आखिरी साथ वाली फिल्म “गंगा जमुना सरस्वती” ने सब कुछ बदल कर रख दिया. यह फिल्म बुरी तरह पिट गई और मनमोहन देसाई के करियर पर सबसे बड़ा धब्बा बन गई.
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शुरुआत में इस फिल्म की कहानी बहुत अलग थी. अमिताभ बच्चन को गंगा, जितेंद्र को जमुना और ऋषि कपूर को सरस्वती चंद्र का रोल मिला हुआ था. लेकिन पहले जितेंद्र ने फिल्म छोड़ दी, फिर ऋषि कपूर भी बाहर हो गए. उनकी जगह मिथुन चक्रवर्ती को लिया गया. हीरोइनों में मीनाक्षी शेषाद्रि और जया प्रदा थीं. इतने सारे बदलावों के कारण स्क्रिप्ट बार-बार बदली गई. कहानी बहुत उलझ गई, दर्शकों को कुछ समझ ही नहीं आया. न गाने चले, न डायलॉग्स याद रहे. फिल्म पूरी तरह फ्लॉप हो गई.
इस असफलता ने मनमोहन देसाई को अंदर तक तोड़ दिया. वे इतने दुखी हुए कि उन्होंने उसी दिन निर्देशन से संन्यास ले लिया. कहा जाता है कि वे कभी उस फ्लॉप को भुला नहीं पाए. बाद में उन्होंने प्रोड्यूसर बनकर अमिताभ के साथ “तूफान” फिल्म बनाई, लेकिन वो भी कुछ खास नहीं चली. उस पुराना जादू फिर कभी नहीं लौटा. इस तरह अमिताभ बच्चन को शहंशाह बनाने वाली गोल्डन जोड़ी एक फ्लॉप फिल्म की वजह से हमेशा के लिए टूट गई. मनमोहन देसाई ने इसके बाद कभी डायरेक्टर की कुर्सी पर नहीं बैठा. बॉलीवुड ने एक जादूगर खो दिया.