पिछले साल सितंबर के महीने में दिल्ली में मैंने एक पर्चा पढ़ा था. व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और फेसबुक पर गांधी की हत्या को जायज़ ठहारने के लिए ऐसी कविताएं और रचनाएं लिखी गईं हैं जो पाठकों में हत्या को लेकर गौरव का भाव भरना चाहती हैं. इसी पर पर्चा था. मैंने उसमें बताया था कि ये सारी रचनाएं टूटे फूटे वाक्य विन्यासों से नहीं बनी हैं बल्कि विचारधारा से लैस, किसी तीव्र दिमाग वाले रचनाकारों की सधी हुई भाषा से निकली हैं. उन्हें पढ़ते हुए मैं ठिठक गया कि इनके रचनाकार कौन हैं, जो पाठक हैं उन पर क्या असर होता होगा. एक तरफ गांधी के नाम पर स्वच्छता का अभियान चल रहा है दूसरी तरफ इन कविताओं में गांधी को ही साफ किया जा रहा है. लाख कोशिशों के बाद भी न तो इन कविताओं के रचनाकार का पता लगा सका था और न ही इसका पाठ करने वाले लोगों का. मगर 30 जनवरी को दोनों ही अपने आप सामने आ गए. अलीगढ़ से आई इस रिकार्डिंग को आप देखिए. देखिए इसलिए कि आपने गांधी को मारते नहीं देखा. अब आप देख सकते हैं कि गांधी को मारने की वो विचारधारा क्या थी, उनके हत्यारे कैसे दिखते थे, क्या पहनते थे, क्या बोलते थे, वो सब आप इस वीडियो में फिर से देख सकते हैं.