कोई वक्ता रोहित वेमुला पर बोलने लगता तो कोई जेएनयू पर। कोई शुरू में रोहित पर बोलता तो बीच में जेएनयू पर और आखिर में राष्ट्रवाद पर। जब तक आप रोहित वेमुला पर कोई राय बनाते दूसरा वक्ता उठता और बहस को जेएनयू के बहाने राष्ट्रवाद और आतंकवाद की दिशा में ले जाता। लगा कि विचारों और भाषणों का झूला झूल रहे हैं। बेहतर होता ये बहस या तो पूरी तरह से जेएनयू पर होती या रोहित वेमुला पर।