हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जब हमारी सांसों पर धूल और धुएं का पहरा है, हमारे पानी में जाने कितनी तरह का ज़हर घुल चुका है. हमारे आसपास की दुनिया दिन ब दिन फीकी पड़ती जा रही है, हमारे पेड़, हमारी नदियां, हमारे पहाड़, हमारे वन्यजीव सब हमसे रूठते जा रहे हैं और इस सबके लिए ज़िम्मेदार हैं ख़ुद हम. वैसे तो इस पर हर रोज़, हर पल बात होनी चाहिए, काम होना चाहिए लेकिन विश्व पर्यावरण दिवस पर इसका ज़िक्र और भी ज़रूरी हो जाता है. ये क़ुदरत को लेकर हमारी बेरुख़ी ही है कि आज हम साफ़ हवा और पानी को मोहताज होते जा रहे हैं. पानी का तो हमने इस क़दर दुरुपयोग कर दिया है कि 2025 तक दुनिया के क़रीब 1.8 अरब लोग पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे होंगे. एनडीटीवी ने प्रसिद्ध पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट से बात की. उन्होंने कहा कि पर्यावरण के बगैर मनुष्य का अस्तित्व का सोच भी नहीं सकते हैं. आज हमें जंगल-जमीन और पानी के बीच का संबंध न सिर्फ समझना होगा बल्कि उसे बचाने के लिए हर संभव कोशिश करनी होगी. उन्होंने कहा कि आज लोग पढ़े लिखे होकर भी जागरूक नहीं है. उन्हें अपने भविष्य के लिए जागरूक होना होगा.