जलसंकट चौतरफ़ा है. हमारा भी है और सारी दुनिया का भी. हमारा कुछ ज़्यादा इसलिए कि हमारी आबादी की रफ़्तार लगातार बढ़ रही है. अगले कुछ सालों में हम चीन को पीछे छोड़ने वाले हैं. जाहिर है, हमारी पानी की ज़रूरतें भी ज़्यादा हैं. जबकि हम अपने पानी के स्रोतों को, अपनी पारपंरिक समझ को जैसे तिलांजलि देते जा रहे हैं. अनुपम मिश्र अब इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन हमारे लिए बड़ी अच्छी किताब छोड़ गए-अब भी खरे हैं तालाब. यह किताब बताती है कि हमारे देश में तालाबों का कैसा जाल था और कैसे रेगिस्तानी इलाक़ों में भी पानी के इंतज़ाम इतने पुख्ता थे कि सूखे के मौसम भी कट जाते थे.