महात्मा गांधी अपनी हत्या से एक दिन पहले यानी 29 जनवरी को देर रात तक एक नए सपने को कागज पर संजो रहे थे, जो एक तरह से उनकी वसीयत थी। वह आने वाले वक्त के लिए कांग्रेस और देश को कुछ समझाना चाहते थे। 30 जनवरी की सुबह भी गांधी ने अपनी साथी मनु से कहा कि कोई साथ आए न आए, मुझे अपने पथ पर आगे जाना ही होगा।