खातून या बकरियां...?

दारुल उलूम, देवबंद के फतवे ने मुस्लिम औरत को लगभग बकरी जैसा पेश करने की कोशिश की है, लेकिन क्या हमारी औरतें ऐसी ज़िंदगी के लिए तैयार हैं...?

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