राजनीति फिर से अपने तेवर में आ गई है. तरह तरह की आवाज़ें आने लगी हैं. गठबंधन की आलोचना हो रही है, गठबंधन भी हो रहा है. सीटों का बंटवारा होने लगा है. बयानों के संघर्ष में मुद्दे अपने लिए संघर्ष का रास्ता खोजने लगे हैं. आम आदमी के मुद्दे पर राजनीति होगी या नेताओं के भाषण पर आम आदमी राजनीति करेगा. मुश्किल समय है. सैकड़ों चैनलों से प्रोपेगैंडा शुरू हो चुका है. सब कुछ टीवी है. टीवी के इस खेल में आप सिर्फ एक दर्शक हैं. टीवी को जो भोग लगेगा, वही आपके बीच प्रसाद के रूप में बंटेगा. न दर्शक जीत सकता है न आम आदमी. लेकिन इस हार को समझने का एक ही तरीका बचा है.