जजों को नियुक्त करने वाली सुप्रीम कोर्ट की संस्था कोलेजियम के फैसले को लेकर विवाद हो गया है. 12 जनवरी 2018 को ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगोई और तीन जज बाहर आए थे और खुले में प्रेस कांफ्रेंस किया था कि सुप्रीम कोर्ट में पारदर्शिता होनी चाहिए. उस वक्त संदेह की सुई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर उठ रही थी. और संयोग देखिए कि जब रंजन गोगोई चीफ जस्टिस बनते हैं तो उनके नेतृत्व में 10 जनवरी को कोलेजियम की बैठक में ऐसा फैसला होता है जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एस के कौल सवाल उठाते हैं। रिटायर चीफ जस्टिस आर एम लोढ़ा कहते हैं कि फैसला किन कारणों से बदला गया, पब्लिक को बताना चाहिए. दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस कैलाश गंभीर राष्ट्रपति को पत्र लिख देते हैं कि कोलेजियम के फैसले में हस्ताक्षर न करें. जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट होने से रोके क्योंकि वे अपने से 32 सीनियर जजों को लांघ कर सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किए जा रहे हैं। इससे न्यायापालिका में बेचैनी बढ़ेगी.