हिंसा होती है तो लोगों का पक्ष कमज़ोर हो जाता है. इसका भी एक सिस्टम बना हुआ है. इसीलिए गांधी जी ने चौरी चौरा की हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. जब प्रदर्शन नियंत्रण से बाहर होने लगे तो रोक देना चाहिए. हिंसा के कई कारण होते हैं फिर भी इसका सबसे बुरा असर प्रदर्शन के नतीजे पर पड़ता है. जो लोग ध्यान से सुन रहे होते हैं वो भी हिंसा के बहाने सुनना बंद कर देते हैं. कई प्रदर्शनों में हिंसा बढ़ने लगी है. एक ट्रेंड दिख रहा है. जहां ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में लोग आ रहे हैं वहां हिंसा नहीं है. जहां तुलनात्मक रूप से कम लोग हैं वहां हिंसा कम हो रही है. हिंसा के बाद वायरल होने वाले वीडियो से तुरंत किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए. उत्तेजित नहीं होना चाहिए. लेकिन इन वीडियो को खारिज कर देना या किनारे लगा देना भी ठीक नहीं है जो कि हो रहा है. इस बार की रिपोर्टिंग में पुलिस की भूमिका वाले वीडियो गायब हो गए हैं. उन पर ठीक से और ठोस तरीके से बात नहीं है.