हमारी राजनीति का चरित्र किसी भी तरह से स्त्री विरोधी है। नेताओं के बोलने का अंदाज, अल्फाज़, आयोजन, देखकर आप समझ सकते हैं कि ये स्त्री अनुकूल नहीं है। तमाम दलों के नेता इस पैमाने पर फेल हुए हैं और आगे भी फेल होंगे, मगर इन सबसे अलग जब आप एक दलित नेता या दलित स्त्री के ख़िलाफ़ बोलते हैं तो उसका अपराध दोगुना हो जाता है। वर्ना तो ऐसे बयान देकर तमाम नेता आराम से बच जाते रहे हैं, लेकिन दयाशंकर सिंह इस बार कोई दया हासिल नहीं कर सके।