चैनलों ने सरकार के संयम को अनदेखा कर दिया है. सरकार की तरफ से कोई आक्रामक बयान आ ही नहीं रहा है. कहीं आ न जाए इसके आस में निगाहें हर बैठक की तरफ दौड़ पड़ती है. करने के बाद चुप हो जाने की आदत मीडिया के लिए नई है. ज़रूरी नहीं कि ये बात कही ही जाए कि हम साथ साथ हैं. जो मीडिया से नाराज़ हैं वो भी उसी मीडिया के आगोश में हैं. अगर सीमा पर टैंक हैं तो टैंक चैनलों के स्टुडियो में भी हैं.