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रवीश कुमार का प्राइम टाइम: लॉकडाउन- पैदल चलते मज़दूरों की हालत का ज़िम्मेदार कौन?

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पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन है. उसके पहले ही यह लॉकडाउन ज़िलों और राज्यों में क्रमिक रूप से शुरू हो ही चुका था. हम लॉकडाउन में रह ही रहे थे अब और रहना होगा. कई लोग मज़ाक में कश्मीर का उदाहरण दे रहे हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए. इसकी तुलना कश्मीर से न करें. अभी भी कश्मीर में इंटरनेट की सुविधा न के बराबर है. रफ्तार कम है. लेकिन शेष भारत के पास वो सुविधा है. कश्मीर के एक डॉक्टर ने ट्वीट किया था कि वे ज़रूरी जानकारियों को इंटरनेट से नहीं डाउनलोड कर पा रहे हैं. अपने मरीज़ का इलाज कैसे करेंगे? हां इस वक्त आप ये ज़रूर कर सकते हैं कि कश्मीर के लोगों से पूछ सकते हैं कि जब शटडाउन था तब उनके दुकानदार कैसे सप्लाई कर रहे थे? बिजनेसमैन का बिजनेस कैसे चल रहा था? दिहाड़ी मज़दूर कैसे खा रहे थे? लोगों को सैलरी कैसे मिल रही थी? आप कश्मीर के बारे में ये सब पता करें तो मदद मिल सकती है. याद कीजिए हम मार्च के पहले हफ्ते में क्या कर रहे थे. कोरोना को लेकर मज़ाक कर रहे थे. तब तक हम काफी लंबा वक्त गंवा चुके थे. दिसंबर के मध्य में ही कोरोना का पता चल गया था. भारत में 30 जनवरी को पहला केस आया. 24 मार्च को 21 दिनों का लॉकडाउन किया गया. करीब-करीब तीन महीने का वक्त जा चुका था, इसलिए जब आपदा हो तो मज़ाक कभी नहीं करते है और लापरवाह कभी नहीं होते.



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