यह सवाल तो खुद से पूछिए कि आप सेक्युलर हैं या नहीं...? होना ज़रूरी भी है या नहीं...? क्या सेक्युलर होना एक सामान्य नागरिक आचरण है, जिसके तहत हम और आप एक-दूसरे की मान्यताओं, आस्थाओं की सीमाओं का आदर करते हैं...? क्या सत्ता बदलने से सेक्युलर होने की समझ बदल जाती है...?