समस्या की भावुकता इतनी संभावनाएं पैदा कर देती है कि हर पक्ष आराम से अपनी अपनी रोटियां सेंक लेता है। कश्मीरी पंडितों की वापसी का मसला ऐसा ही है। जिनके बीच बातचीत से इस मसले का हल होना है उनके बीच सीधे या ईमानदारी से बात होती नहीं है, लेकिन जिनका सीधा संबंध इस मसले से नहीं है उनकी राय भी इतनी सख्त है कि आप वहां सुलझा लेंगे तो यहां उलझ जाएगा।