कभी हम भ्रष्टाचार के नाम पर भीड़ बन जाते हैं। कभी धर्म के नाम पर भीड़ बन जाते हैं। कभी जातिवाद तो कभी राष्ट्रवाद। भीड़ लोकतंत्र का एक ज़रूरी हिस्सा है। इनका बनना रोका नहीं जा सकता लेकिन सोचा तो जा सकता है कि आरक्षण की लड़ाई में इतनी हिंसा की गुंज़ाइश कैसे पैदा हो गई कि लोगों ने अपने ही शहर को जला दिया।