अटल बिहारी वाजपेयी की अब सिर्फ स्मृतियां ही हैं. उनकी अंतिम यात्रा पूरे मान सम्मान के साथ पूरी हुई. बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए हैं. प्रधानमंत्री मोदी खुद पैदल चल कर गए. पांच छह किमी पैदल चलते रहे. उनके सहयोगी लाल कृष्ण आडवाणी भी मौजूद थे. विपक्ष के नेता मनमोहन सिंह से लेकर राहुल गांधी मौजूद रहे. कई मुख्यमंत्री पैदल चल रहे थे. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी मौजूद थे. अटल बिहारी वाजपेयी की दत्तक पुत्री नमिता ने उन्हें मुखाग्नि दी. सबने हर तरह से उन्हें याद किया है. एनडीटीवी को उन्होंने 2004 में एक इंटरव्यू दिया था. उस दौरान उन्होंने कहा कि 1957 से चुनाव लड़ रहा हूं. लोकसभा हार जाता हूं तो राज्यसभा चला जाता हूं. उन्होंने कहा था कि इतना सोचा था कि अच्छा साहित्यकार बनूंगा. मुझे उम्मीद थी, मेरी कविताएं पढ़ी जाएंगी. उन्होंने कहा कि राजनीति ख़तरनाक स्थिति की ओर जा रही है. जनतंत्र धनतंत्र में बदल रहा है. राजनीति में कदम-कदम पर समझौता करना पड़ता है. जीवन के मूल्यों के साथ समझौता नहीं हो सकता.