दिसंबर 2013 में लोकपाल कानून बन गया लेकिन 2017 आ गया, लोकपाल कौन है, इसका ज़िक्र न बैंकिंग सर्विस क्रोनिकल में मिलेगा न ही प्रतियोगिता दर्पण में क्योंकि लोकपाल बना ही नहीं है. कुल मिलाकर बग़ैर लोकपाल के ही भ्रष्टाचार की मुक्ति का सर्टिफिकेट बंट रहा है. दो साल तक लोकपाल को भ्रष्टाचार के कफ सिरप के रूप में पेश किया गया मगर चार साल से इसकी कोई सुध ही नहीं ले रहा है. इससे कहीं तेज़ी से लोकसभा में वित्त विधेयक पास हो गया और विपक्ष देखता रह गया. इस संशोधन में राजनीतिक दलों ने अपने लिए कारपोरेट चंदे का बढ़िया इंतज़ाम कर लिया है.