साबरमति आश्रम के सौ साल पूरे हो गए हैं. इसी मौके पर प्रधानमंत्री गुरुवार को अहमदाबाद में थे, वहां उन्होंने गांधी और बिनोबा की अलग व्याख्या तो की लेकिन राजकोट जाते ही गांधी की सादगी अहमदाबाद में ही छूट गई. सूरत के बाद राजकोट को जिस तरह सजाया गया, किसी को यह सवाल करना चाहिए कि क्या अब राजनीति इतनी भव्य और महंगी हो जाया करेगी. तब आत्महत्या करने वाला किसान मरने से पहले हमारे नेताओं के बारे में क्या सोचेगा. पहले रैली के मैदान को सेट में बदला गया, अब सूरत के बाद राजकोट को देखकर लगा कि पूरे शहर को ही सीरीयल की तरह रैली के सेट में बदला जा रहा है.